मस्त रहो, स्वस्थ्य रहो, हरि नाम में व्यस्त रहो
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एक महानगरी में एक नया मन्दिर बन रहा था । हजारों श्रमिक उस मन्दिर को बनाने में संलग्न थे, पत्थर तोड़े जा रहे थे, मूर्तियां गढ़ी जा रही थीं, एक व्यक्ति उस मन्दिर के पास से गुजर रहा था । पत्थर तोड़ रहे एक मजदूर से उसने पूछा, मेरे मित्र क्या कर रहे हो? उस मजदूर ने क्रोध से उस अजनबी को देखा और कहा - अंधे हैं, दिखाई नहीं पड़ता है, पत्थर तोड़ रहा हूँ ।
वह आगे बढ़ा और उसने मशगूल दूसरे मजदूर से, वह मजदूर भी पत्थर तोड़ रहा था, उससे भी उसने यही पूछा कि मेरे मित्र क्या कर रहे हो? उस मजदूर ने उदास हारी हुयी आँखें जिसमें कोई ज्योति न हो, जिसमें कोई भाव न हो कहा- बच्चों के लिए, पत्नी के लिए रोजी-रोटी कमा रहा हूँ ।
वह अजनबी आगे बढ़ा और उसने तीसरे मजदूर से पूछा, वह मजदूर भी पत्थर तोड़ रहा था । लेकिन वह पत्थर भी तोड़ता था और साथ में गीत भी गुनगुनाता था । उसने उस मजदूर से पूछा, मेरे मित्र क्या कर रहे हो? उस मजदूर ने आँखें उठाई ख़ुशी से, आनंद से भरी आँखों से उसने उस अजनबी को देखा और कहा - देखते नहीं, भगवान का मन्दिर बना रहा हूँ । और उसने फिर आन्नद से पत्थर तोडना शुरू कर दिया ।
वे तीनों व्यक्ति पत्थर ही तोड़ रहे थे, वे तीनों एक ही काम में संलग्न थे लेकिन एक क्रोध से तोड़ रहा था, एक उदासी से तोड़ रहा था, एक आनंद के भाव से।
जीवन वहीं हो जाता है जिस भाव को लेकर हम जीवन में प्रविष्ट होते हैं, जीवन वहीं हो जाता है, जो हम उसे बनाने को आतुर, उत्सुक और प्यासे होते हैं। जव हम जीवन को कृष्णमय वना देते ,आनंदमय भाव से जीते है तो मेरा यकीन करना कि इस आनंदमयी डगर में ,हरि गुण गाते,
किसी न किसी मोड़ पर राधा रमण जी से मिलन हो ही जाएगा।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
हरि बोल
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BHAGWAN SHREE HASRI JEEV KE LIYE PARAM SUKHDAYAK HAI KI PRAASNTA HAI
जवाब देंहटाएंRADHE RADHE
hari bol
जवाब देंहटाएंMere hari....jai ho
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