संत दर्शन का फल...Krishna katha... bhakt charno ki mahima

------ कृष्ण कथा ------

एक जंगल में एक संत, अपनी कुटिया में रहते थे।
एक किरात (शिकारी) जब भी वहाँ से निकलता,
संत को प्रणाम जरूर करता था।

एक दिन किरात संत से बोला- मैं तो मृग का शिकार करता हूँ,
आप किसका शिकार करने जंगल में बैठे हैं?

संत बोले- श्री कृष्ण का।
और रोने लगे।

तब किरात बोला- अरे बाबा! रोते क्यों हो?
मुझे बताओ! वो दिखता कैसा है?
मैं पकड़ के लाऊंगा उसको।

संत ने भगवान का स्वरुप बताया,
कि वो सांवला है, मोर पंख लगाता है और बांसुरी बजाता है।

किरात बोला- बाबा! जब तक मैं आपका शिकार पकड़कर नहीं लाता,
मैं पानी तक नहीं पियूँगा।

फिर वो किरात, एक जगह जाल बिछा कर बैठ गया।

तीन दिन बीत गए प्रतीक्षा करते हुए।
भगवान को दया आ गयी और वो बांसुरी बजाते हुए आ गए,
और खुद ही जाल में फंस गए।

किरात चिल्लाने लगा- शिकार मिल गया, शिकार मिल गया।
अच्छा बच्चू! तीन दिन तक भूखा-प्यासा रखा।
अब जा कर मिले हो।

किरात ने कृष्ण को शिकार की भांति अपने कंधे पे डाला,
और संत के पास ले गया।
बोला- बाबा! आपका शिकार लाया हूं।

बाबा ने जब ये दृश्य देखा,
कि किरात के कंधे पे श्री कृष्ण हैं और जाल में से मुस्कुरा रहे हैं,
संत चरणों में गिर पड़े।
फिर ठाकुर से बोले- मैंने बचपन से घर बार छोड़ा पर आप नहीं मिले।
और इसे तीन दिनों में ही मिल गए, ऐसा क्यों?

भगवान बोले- इसने तुम्हारा आश्रय लिया,
इसलिए इसे तीन दिन में दर्शन हो गए।

------ अर्थात ------
भगवान पहले उस पर कृपा करते हैं,
जो उनके दासों के चरण पकड़े होता है।

किरात को पता भी नहीं था कि भगवान कौन हैं,
पर संत को रोज प्रणाम करता था।

संत प्रणाम और दर्शन का फल ये है,
कि तीन दिनों में ही किरात को ठाकुर (भगवान) मिल गए।

------ संत मिलन को जाईये ------
------ तजि ममता अभिमान ------
------ ज्यों-ज्यों पग आगे बढ़े ------
------ कोटिन्ह यज्ञ समान ------

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