🌷 *क्या भगवान् को मेरी परवाह है?*🌷
जब हमारा जीवन अनेक दु:खों एवं परेशानियों के थपेड़ों की चपेट में अा जाता है अौर दु:खों की अाँधी रुकने का नाम ही नहीं लेती तो हमारे मन में प्रश्न उठता है…
क्या भगवान् को मेरी तनिक भी परवाह है या नहीं।
भगवद्गीता के नवे अध्याय के बाईसवे श्लोक में भगवान् श्रीकृष्ण हमें अाशान्वित करते हैं
अनन्याश्र्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते ।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ।।
जो भी अनन्य भाव से मेरे रूप का ध्यान करते हुए मेरी अाराधना करते हैं, जो भी उनके पास है मैं उसकी रक्षा करता हूँ अौर जो नहीं है उसे लाकर देता हूँ।
जीवन की किसी भी परिस्थिति में यदि हम श्रीकृष्ण की अोर मुड़ेंगे तो वे हमारा ध्यान अवश्य रखेंगे। वे तो हमारी देखभाल हमेशा ही कर रहे हैं, परमात्मा के रूप में वे हमारे हृदय में विराजमान हैं अौर हमारी सभी इच्छाअों पर निगरानी रख उनका अनुमोदन करते हैं। *इस जगत् की सभी वस्तुएँ जैसे कि फल, फूल, अन्न, जल, वायु, सूर्य की रोशनी, अग्नि इत्यादि सभी उनसे ही तो अाते हैं।*
ये तो हम ही हैं जो अपने स्वार्थी दृष्टिकोण के कारण उनकी उपस्थिति अौर योगदान का अनुभव नहीं कर पाते।
यद्यपि हमारी लगभग सभी महत्वकांक्षायें स्वयं के भोग के लिए होती हैं अौर वे हमें अपने मूल स्वरूप जो कि भगवान् के सेवक बनने से दूर ले जाती हैं किन्तु फिर भी भगवान् हमारी स्वतन्त्रता में दखल नहीं देते अौर चुपचाप हमारी इच्छाअों को मंजूरी देते रहते हैं। उन्हें धन्यवाद देने की जगह हम उन पर अारोप लगाते हैं कि मेरे जीवन में दु:ख अा रहे हैं किन्तु इन दु:खों का अाना तो इस भौतिक जगत् के नियमानुसार ही है, क्योंकि *सम्पूर्ण सृष्टि की समस्त वस्तुएँ भगवान् की सम्पत्ति है अौर उन्हीं के अानंद के लिए बनी हैं* अौर जब भी हम इस भौतिक जगत् की वस्तुअों को भगवान् को अर्पित किए बिना अपने भोग के लिए लेंगे तो वह दु:ख का कारण अवश्य ही बनेगी।
लोग कहते हैं कि भगवान् ने इस भौतिक जगत् के नियम एेसे क्यों नहीं बनाए जिससे कि हम उनके बिना भी सभी वस्तुअों का भोग विलास कर सके अौर कोई दु:ख भी न अाए।
यदि वे एेसा करते तो हम कभी भी उनकी अोर मुड़ने का नाम नहीं लेते, अौर उनकी अोर न मुड़ने का अर्थ है – असीमित शाश्वत् सुख से मुड़ना क्योंकि वे ही परम अानंद के भण्डार हैं। इस भौतिक जगत् के सुख तो उनके संग में प्राप्त सुख के सागर के समक्ष एक बूँद के बराबर भी नहीं हैं।
ये श्रीकृष्ण की असीम कृपा ही तो है कि जब भी हम उनसे विमुख होकर सुखी होने का मिथ्या प्रयास करते हैं, हमारे दु:खों के द्वारा वे हमें उनकी अोर मुड़ने का अवसर प्रदान करते हैं। उनकी हमारी परवाह अौर देखभाल करने का दूसरा रूप ही ये दु:ख हैं। अौर *इन दु:ख भरी परिस्थितियों में यदि हम उनकी अोर मुड़कर हृदय से प्रार्थना करते हुए उन्हें प्रेमपूर्वक स्मरण करेंगे तो अवश्य ही हम उनकी कृपा को अनुभव कर पायेंगे।*
यदि हम किसी व्यक्ति के प्रेम का अनुभव करना चाहते हैं तो हमें अपने बारे में न सोचकर कि मुझे क्या चाहिए, यह भी सोचना होगा कि उस व्यक्ति को क्या चाहिए? अौर जब हम दूसरे व्यक्ति की इच्छाअों को ध्यान में रखेंगे तो ही प्रेम का अादान-प्रदान सम्भव है।
श्रीकृष्ण मैं अापसे प्रेम करता हूँ, अापसे विमुख होकर मैं दु:खों के बवंडर में फँस गया हूँ, अापको स्मरण करने हेतु कृपया मेरी सहायता कीजिए। मुझे अापकी विस्मृति कभी न हो, सुख में या दु:ख में सभी परिस्थितियों में मैं सदैव अापसे प्रेम करता रहूँ।
*यदि एक बार भी श्रीकृष्ण की अोर मुड़कर हम इस नि:सहाय भावना से उन्हें पुकारेंगे तो अपनी चेतना में एक बड़ा परिवर्तन पायेंगे* अौर उनके द्वारा की जाने वाली देखभाल का अनुभव कर पायेंगे।🌷
सआभार किसी रसिक की वाणी
जब हमारा जीवन अनेक दु:खों एवं परेशानियों के थपेड़ों की चपेट में अा जाता है अौर दु:खों की अाँधी रुकने का नाम ही नहीं लेती तो हमारे मन में प्रश्न उठता है…
क्या भगवान् को मेरी तनिक भी परवाह है या नहीं।
भगवद्गीता के नवे अध्याय के बाईसवे श्लोक में भगवान् श्रीकृष्ण हमें अाशान्वित करते हैं
अनन्याश्र्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते ।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ।।
जो भी अनन्य भाव से मेरे रूप का ध्यान करते हुए मेरी अाराधना करते हैं, जो भी उनके पास है मैं उसकी रक्षा करता हूँ अौर जो नहीं है उसे लाकर देता हूँ।
जीवन की किसी भी परिस्थिति में यदि हम श्रीकृष्ण की अोर मुड़ेंगे तो वे हमारा ध्यान अवश्य रखेंगे। वे तो हमारी देखभाल हमेशा ही कर रहे हैं, परमात्मा के रूप में वे हमारे हृदय में विराजमान हैं अौर हमारी सभी इच्छाअों पर निगरानी रख उनका अनुमोदन करते हैं। *इस जगत् की सभी वस्तुएँ जैसे कि फल, फूल, अन्न, जल, वायु, सूर्य की रोशनी, अग्नि इत्यादि सभी उनसे ही तो अाते हैं।*
ये तो हम ही हैं जो अपने स्वार्थी दृष्टिकोण के कारण उनकी उपस्थिति अौर योगदान का अनुभव नहीं कर पाते।
यद्यपि हमारी लगभग सभी महत्वकांक्षायें स्वयं के भोग के लिए होती हैं अौर वे हमें अपने मूल स्वरूप जो कि भगवान् के सेवक बनने से दूर ले जाती हैं किन्तु फिर भी भगवान् हमारी स्वतन्त्रता में दखल नहीं देते अौर चुपचाप हमारी इच्छाअों को मंजूरी देते रहते हैं। उन्हें धन्यवाद देने की जगह हम उन पर अारोप लगाते हैं कि मेरे जीवन में दु:ख अा रहे हैं किन्तु इन दु:खों का अाना तो इस भौतिक जगत् के नियमानुसार ही है, क्योंकि *सम्पूर्ण सृष्टि की समस्त वस्तुएँ भगवान् की सम्पत्ति है अौर उन्हीं के अानंद के लिए बनी हैं* अौर जब भी हम इस भौतिक जगत् की वस्तुअों को भगवान् को अर्पित किए बिना अपने भोग के लिए लेंगे तो वह दु:ख का कारण अवश्य ही बनेगी।
लोग कहते हैं कि भगवान् ने इस भौतिक जगत् के नियम एेसे क्यों नहीं बनाए जिससे कि हम उनके बिना भी सभी वस्तुअों का भोग विलास कर सके अौर कोई दु:ख भी न अाए।
यदि वे एेसा करते तो हम कभी भी उनकी अोर मुड़ने का नाम नहीं लेते, अौर उनकी अोर न मुड़ने का अर्थ है – असीमित शाश्वत् सुख से मुड़ना क्योंकि वे ही परम अानंद के भण्डार हैं। इस भौतिक जगत् के सुख तो उनके संग में प्राप्त सुख के सागर के समक्ष एक बूँद के बराबर भी नहीं हैं।
ये श्रीकृष्ण की असीम कृपा ही तो है कि जब भी हम उनसे विमुख होकर सुखी होने का मिथ्या प्रयास करते हैं, हमारे दु:खों के द्वारा वे हमें उनकी अोर मुड़ने का अवसर प्रदान करते हैं। उनकी हमारी परवाह अौर देखभाल करने का दूसरा रूप ही ये दु:ख हैं। अौर *इन दु:ख भरी परिस्थितियों में यदि हम उनकी अोर मुड़कर हृदय से प्रार्थना करते हुए उन्हें प्रेमपूर्वक स्मरण करेंगे तो अवश्य ही हम उनकी कृपा को अनुभव कर पायेंगे।*
यदि हम किसी व्यक्ति के प्रेम का अनुभव करना चाहते हैं तो हमें अपने बारे में न सोचकर कि मुझे क्या चाहिए, यह भी सोचना होगा कि उस व्यक्ति को क्या चाहिए? अौर जब हम दूसरे व्यक्ति की इच्छाअों को ध्यान में रखेंगे तो ही प्रेम का अादान-प्रदान सम्भव है।
श्रीकृष्ण मैं अापसे प्रेम करता हूँ, अापसे विमुख होकर मैं दु:खों के बवंडर में फँस गया हूँ, अापको स्मरण करने हेतु कृपया मेरी सहायता कीजिए। मुझे अापकी विस्मृति कभी न हो, सुख में या दु:ख में सभी परिस्थितियों में मैं सदैव अापसे प्रेम करता रहूँ।
*यदि एक बार भी श्रीकृष्ण की अोर मुड़कर हम इस नि:सहाय भावना से उन्हें पुकारेंगे तो अपनी चेतना में एक बड़ा परिवर्तन पायेंगे* अौर उनके द्वारा की जाने वाली देखभाल का अनुभव कर पायेंगे।🌷
सआभार किसी रसिक की वाणी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें